लोक-कथा में असुर मेरी बड़ी दादी बचपन में मुझे एक कथा सुनाती थी; जिसमें एक जंगल में दानवदूत की सुन्दर पुत्री हुआ करती थी। एक दिन उसकी अनुपस्थिति के बीच संध्या समय एक राजकुमार लड़की को मिला। उस असुर-पुत्र की कन्या ने बताया कि उसके पिता दैत्य (असुर) हैं, वे आएंगे तो उसे मार देंगे। इसलिए उसने मिट्टी की कोठिला (मृद्भांड) में उसे छुपा दिया। वह दानवादुत देर संध्या पहर लौटा तो, ‘‘छिः मानुख! छिः मानुख’’ करने लगा। उसे महसूस हो गया कि जरूर यहां कोई हमलोगों से भिन्न ‘मनुष्य’ आया है। बेटी से पूछा किंतु उसकी बेटी ने इस तरह की किसी बात से इन्कार किया। बेटी का कुशल-मंगल लेने के बाद वह चला गया। उसके जाने के उपरान्त असुर पुत्री ने राजकुमार को कोठिले से बाहर निकाला और उसे खाना खिलाया। खाना खिलाते वक्त दोनों के बीच कई संवाद हुए। वे दोनों एक दूसरे को चाहने लगे। राजकुमार ने असुर पुत्री से पूछा ‘‘आपके पिता का प्राण कहां बसता है?’’ इस पर उसने बताया कि उसके पिता का प्राण ताड़ के पेड पर रहने वाले एक सुन्दर पंछी में बसता है। अगले दिन राजकुमार ने ताड़ पर के उस तोते (सुग्गा) का गर्दन ऐंठ दिया। तोते के गर्दन के ऐंठ जात...
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